नई दिल्ली: बिलकिस बानो मामले के दोषियों की समय से पहले रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार (26 मार्च) को शीर्ष न्यायालय ने सुनवाई की. इसके बाद कोर्ट ने केंद्र, गुजरात राज्य और 11 दोषियों को नोटिस भी जारी किया है. जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के लिए अब 18 अप्रैल की तारीख तय की है. इसके साथ ही सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘दोषियों द्वारा किया गया अपराध भयावह है और यह भावनाओं से अभिभूत नहीं होगा.
रिहाई संबंधी फाइलें तैयार रखें
पीठ ने सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू से पूछा कि क्या छूट देने से पहले उनसे परामर्श किया गया था. इस सवाल पर ASG ने पीठ को बताया कि केंद्र से इस मामले में विधिवत परामर्श किया गया था. जिस पर गुजरात राज्य के वकील से न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि सुनवाई की अगली तारीख पर दोषियों की रिहाई से संबंधित सभी फाइलें तैयार रखें. फिलहाल 18 अप्रैल के लिए अदालत ने सुनवाई की अगली तारिख निर्धारित करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि वह पहले दायरा तय करेगी जिसके अंतर्गत सुनवाई की जाएगी.
पैरोल में लगे थे छेड़छाड़ के आरोप
मामले में पेश होने वाले वकीलों से न्यायमूर्ति जोसेफ ने यह भी कहा कि जून से पहले इस मामले को समाप्त करने की जरूरत है, क्योंकि जून में वह सेनानिवृत्त हो रहे हैं. इसके अलावा अदालत ने यह भी पूछा कि जब हत्या के दोषी भी वर्षों से जेल में बंद हैं तो क्या गुजरात सरकार इस तरह से छूट नीति लागू कर सकती है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सभी रिहा होने वाले दोषियों की आपराधिक पृष्ठभूमि पर भी सवाल किया है. वृंदा ग्रोवर ने इस सवाल के जवाब में पीठ को बताया कि पैरोल के समय पर सभी दोषियों पर छेड़छाड़ का आरोप लगा था. मामले में वृंदा ग्रोवर जनहित याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुई थीं. जस्टिस बी वी नागरत्ना ने इस दौरान उस छूट नीति के बारे में सवाल किया जिसके अदहार पर दोषियों को इस मामले में तत्काल छूट दी गई थी.
इसपर एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने 1992 की नीति को आधार बताया. इस मामले में एक 2014 नीति का भी नाम लिया. उन्होंने आगे कहा कि इन दोनों ही आधार पर देखा जा सकता है कि दोषियों को मिलने वाली छूट केंद्र और राज्य दोनों की छूट नीति के खिलाफ थी. उन्होंने आगे 2014 की नीति का उल्लेख करते हुए कहा कि बलात्कार और हत्या के दोषियों को राज्य सरकार द्वारा रिहा नहीं किया जा सकता है. हालांकि 1992 की नीति में रिहाई के योग्य या अयोग्य श्रेणी में वर्गीकरण साफ़ तौर पर नहीं किया गया है.