डिमेंशिया या मनोभ्रंश एक ऐसा विकार है, जिसमें मरीज मानसिक रूप से इतना कमजोर हो जाता है कि उसे अपने दैनिक कार्यों को पूरा करने के लिए भी दूसरों की मदद लेनी पड़ती है
2050 तक भारत में डिमेंशिया या मनोभ्रंश के मरीजों में 197 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। जिससे देश में इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों का आंकड़ा बढ़कर 1.14 करोड़ से ज्यादा हो जाएगा। गौरतलब है कि वर्तमान में डिमेंशिया के कुल मरीजों की संख्या करीब 38.4 लाख है। यह जानकारी हाल ही में जर्नल लैंसेट पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक शोध में सामने आई है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत ही इस समस्या से ग्रस्त है उसके निकट पड़ोसियों के लिए भी यह समस्या काफी गंभीर है। अनुमान है कि 2050 तक चीन में इसके मरीजों की संख्या में 197 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। वहीं मालदीव में 554 फीसदी, श्रीलंका में 224 फीसदी, बांग्लादेश में 254 फीसदी, भूटान में 351 फीसदी, नेपाल में 210 फीसदी और पाकिस्तान में 261 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।
यह बीमारी कितनी घातक हो सकती है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार सभी बीमारियों से होने वाली मृत्यु के मामले में मनोभ्रंश सातवां प्रमुख कारण है। इतना ही नहीं यह वैश्विक स्तर पर वृद्ध लोगों में विकलांगता और दूसरों पर बढ़ती निर्भरता के प्रमुख कारणों में से एक है।
क्या होता है डिमेंशिया
विशेषज्ञों की मानें तो डिमेंशिया एक ऐसा रोग है, जिसमें दिमाग के अंदर विभिन्न प्रकार के प्रोटीन का निर्माण होने लगता है, जो मस्तिष्क के उत्तकों को नुकसान पहुंचाने लगते हैं। इसके कारण इंसान की याददाश्त, सोचने-समझने, देखने और बोलने की क्षमता में धीरे-धीरे गिरावट आने लगती है।
देखा जाए तो डिमेंशिया किसी एक बीमारी का नाम नहीं है, बल्कि यह कई बीमारियों या यूं कहें कि कई लक्षणों के एक समूह का नाम है। अल्जाइमर इस तरह की एक सबसे प्रमुख बीमारी है, जो बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करती है। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो डिमेंशिया के 60 से 70 फीसदी मामलों के लिए अल्जाइमर ही वजह होता है।
डिमेंशिया या मनोभ्रंश उम्र के बढ़ने के साथ होने वाली एक समस्या है। यह एक ऐसा विकार है, जिसमें मरीज मानसिक रूप से इतना कमजोर हो जाता है कि उसे अपने रोजमर्रा के कामों को पूरा करने के लिए भी दूसरों की मदद लेनी पड़ती है।
शोधकर्ताओं की मानें तो मनोभ्रंश के मामलों में होने वाली वृद्धि के लिए कहीं हद तक बढ़ती उम्र और आबादी में होती वृद्धि जिम्मेवार है। लेकिन साथ ही इसके बढ़ते जोखिम के लिए अन्य कारक जैसे धूम्रपान, बढ़ता मोटापा और ब्लड शुगर में होती वृद्धि भी वजह हो सकते हैं।
वैश्विक स्तर पर कितनी गंभीर है यह समस्या
वहीं यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो 2019 से 2050 के बीच डिमेंशिया के मरीजों की संख्या तीन गुना बढ़ जाएगी। गौरतलब है कि 2019 में वैश्विक स्तर पर डिमेंशिया के 5.7 करोड़ मामले आए थे, जिनके बारे अनुमान है कि यह आंकड़ा 2050 तक 166 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 15.3 करोड़ हो जाएगा।
गौरतलब है कि हर साल इस बीमारी के एक करोड़ नए मामले सामने आते हैं। डब्लूएचओ के अनुसार वर्तमान में दुनिया भर में डिमेंशिया के 60 फीसदी से ज्यादा मरीज निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं। 2019 में मनोभ्रंश की कुल अनुमानित सामाजिक लागत करीब 96 लाख करोड़ रुपए आंकी गई थी। जिसके बारे में अनुमान है कि वो 2030 तक बढ़कर 206.9 लाख करोड़ हो जाएगी।
इतना ही नहीं शोध में यह भी सामने आया है कि 2050 तक दुनिया के लगभग हर देश में मनोभ्रंश से पीड़ित लोगों की संख्या में इजाफा हो सकता है। हालांकि उत्तरी अफ्रीका, मध्य पूर्व और पूर्वी उप-सहारा अफ्रीका के देशों में इसके मामलों में सबसे ज्यादा वृद्धि होने की सम्भावना है।
अनुमान है कि जहां उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में इसके मामलों में 2050 तक 367 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है, वहीं पूर्वी उप-सहारा अफ्रीका में इसके मामलों में 357 फीसदी, पश्चिमी उप सहारा अफ्रीका में 348 फीसदी, मध्य उप सहारा अफ्रीका में 332 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।
मध्य एशिया में 244 फीसदी, पूर्वी एशिया में 200 फीसदी, दक्षिण पूर्व एशिया में 238 फीसदी, वहीं उच्च आय वाले एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इस वृद्धि के 53 फीसदी और पश्चिमी यूरोप में 74 फीसदी, पूर्वी यूरोप में 92 फीसदी, मध्य यूरोप में 82 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है।
वर्तमान में डिमेंशिया के इलाज के लिए बहुत कम दवाएं उपलब्ध हैं। भारत जैसे विकासशील और पिछड़े देशों में तो इस बात पता ही नहीं लगता की कब लोग इस बीमारी का शिकार बन जाते हैं। ऐसे में प्रारंभिक अवस्था में ही इस रोग की पहचान और इलाज की शुरआत बहुत महत्वपूर्ण होती है।