हरियाणा चुनाव: उपमुख्यमंत्री पद क्यों बना सियासी दांव?

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पॉलिटिकल ऑब्ज़र्वर ब्यूरो | चंडीगढ़:  हरियाणा में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, सियासी समीकरणों में नए मोड़ आ रहे हैं। मुख्यमंत्री पद की होड़ के बीच अब उपमुख्यमंत्री (डिप्टी सीएम) का पद चर्चा में आ गया है। खासकर छोटे दलों और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी द्वारा इस पद को लेकर दांव-पेंच चलाए जा रहे हैं। आइए समझते हैं कि क्यों हरियाणा की सियासत में डिप्टी सीएम का पद अहम हो गया है और इससे कौन-कौन प्रभावित हो सकता है।

डिप्टी सीएम की चर्चा कैसे शुरू हुई?

हरियाणा में उपमुख्यमंत्री पद की बात सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख मायावती ने छेड़ी। उचाना में आयोजित एक रैली में उन्होंने ऐलान किया कि अगर हरियाणा में इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) और BSP का गठबंधन सत्ता में आता है, तो राज्य में दो उपमुख्यमंत्री बनाए जाएंगे। इस गठबंधन ने घोषणा की कि इनमें से एक डिप्टी सीएम दलित समुदाय से होगा और दूसरा ओबीसी या सवर्ण समुदाय से।

हरियाणा में दलित समुदाय की आबादी लगभग 20% है, जबकि सवर्ण जातियों की हिस्सेदारी करीब 10% है। मायावती और अभय चौटाला की इस घोषणा के बाद सियासी गलियारों में हलचल मच गई, और अन्य पार्टियों ने भी अपनी रणनीतियों को मजबूत करना शुरू कर दिया।

कांग्रेस की रणनीति और कुमारी सैलजा का बयान

कांग्रेस के भीतर भी उपमुख्यमंत्री पद को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। कुमारी सैलजा, जो हरियाणा में कांग्रेस की प्रमुख दलित नेता हैं, को लेकर चर्चा है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो उन्हें डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है। हालांकि, खुद सैलजा ने इन अटकलों को खारिज करते हुए कहा कि उन्हें इस पद में कोई रुचि नहीं है।

इसके अलावा, कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा का एक वायरल वीडियो सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस की सरकार बनती है, तो भूपिंदर सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री और वे स्वयं डिप्टी सीएम होंगे।

हरियाणा में अब तक कितने डिप्टी सीएम बने?

हरियाणा के राजनीतिक इतिहास में अब तक केवल 6 उपमुख्यमंत्री बने हैं। पहली बार 1967 में राव बीरेंद्र सिंह की सरकार में चौधरी चंद राम डिप्टी सीएम बने थे। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार में मंगल सेन और फिर देवीलाल सरकार में बनारसी दास गुप्ता को यह पद मिला। ओम प्रकाश चौटाला की सरकार में हुकुम सिंह इस पद पर रहे, जबकि 2005 में भूपिंदर सिंह हुड्डा की सरकार में चंद्र मोहन को डिप्टी सीएम बनाया गया।

ताजा मामला 2019 का है, जब दुष्यंत चौटाला को मनोहर लाल खट्टर सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया था, और वे करीब चार साल तक इस पद पर बने रहे।

उपमुख्यमंत्री पद का सियासी महत्व

राज्य के स्तर पर डिप्टी सीएम का पद न केवल जातिगत समीकरणों को साधने में मददगार साबित होता है, बल्कि गठबंधन की मजबूती के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण कड़ी बनता है। चूंकि हरियाणा में जातिगत समीकरणों का बड़ा प्रभाव है, इसलिए राजनीतिक पार्टियां इस पद का उपयोग विभिन्न समुदायों को संतुलित करने के लिए करती हैं।

उदाहरण के लिए, बिहार में नीतीश कुमार की सरकार में बीजेपी के दो उपमुख्यमंत्री थे, जबकि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार जैसे नेता डिप्टी सीएम के पद पर हैं। आंध्र प्रदेश की सरकार ने भी 2019 से 2024 के दौरान 5 उपमुख्यमंत्री नियुक्त किए थे।

संविधान में डिप्टी सीएम का स्थान

भारतीय संविधान में डिप्टी सीएम का कोई सीधा जिक्र नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 164 में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के प्रावधान हैं, लेकिन उपमुख्यमंत्री का कोई विशेष उल्लेख नहीं है। इस पद का औपचारिक दर्जा एक मंत्री के बराबर होता है, और इसके अधिकार सीमित होते हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में डिप्टी सीएम कैबिनेट की बैठकें संचालित कर सकते हैं।

देश के किन-किन राज्यों में डिप्टी सीएम?

वर्तमान में भारत के 14 राज्यों में लगभग 20 उपमुख्यमंत्री कार्यरत हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में 2-2 डिप्टी सीएम हैं। ये सभी राज्य एनडीए के शासन में हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस शासित तेलंगाना, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में एक-एक उपमुख्यमंत्री हैं। हालांकि, केरल, बंगाल, झारखंड, और तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह पद फिलहाल नहीं है।

निष्कर्ष

हरियाणा की राजनीति में उपमुख्यमंत्री पद जातिगत और सियासी समीकरणों को साधने के लिए एक महत्वपूर्ण मोहरा बन गया है। चाहे वह मायावती और अभय चौटाला का गठबंधन हो या कांग्रेस के भीतर की हलचल, इस पद पर दांव-पेंच लगातार चल रहे हैं। जातीय संतुलन साधने के साथ-साथ गठबंधन को मजबूती देने के लिए इस पद का उपयोग होता रहा है, और आगामी चुनावों में यह किसे मिलेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

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